तुम्हें जब कभी मिलें फुरसतें मेरे दिल से बोझ उतार दो,
मै बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे एक शाम उधार दो...
वहां घर में कौन है मुन्तजिर की हो फ़िक्र देर सवेर की,
बड़ी मुख्तस्सर सी ये रात है इसे चांदनी में गुज़ार दो...
तुम्हें सुबह कैसी लगी कहो मेरी ख्वाहिशों के दयार की,
जो लगी भली तो यहीं रहो इसे चाहतों से संवार दो...